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________________ मूलाराधना १०७३ शतानि श्रीणि संत्यस्थनां मज्जापूर्णानि विग्रहे ॥ संघीनामपि तावन्ति सन्ति सर्वत्र मानुषे ।। १०५४ ॥ विजयोदया- अट्टणि हुनि तिरिण दु सदाणि त्रिशतान्यस्थीनि । भरिदाणि कुणिममज्जार पूर्णानि कुतिन मज्जासंज्ञितेन सत्यम्मि क्षेत्र देहतिसर्वमिव देहे शरीर । संघीणि इर्वति तावदिगा । संधिप्रमाणमपि त्रिशतमेव ॥ मृदेहावयवेत्तावधारणार्थमुत्तरबंध माह- मूलारा -- अट्टणि इति तावदिया विशनप्रमाणा: । / वृद्धिके क्रमका निरूपण कर शरीर के अवयवोंका विवेचन करते हैं--- अर्थ — इस मनुष्य के देहमें तीनो अस्थि हैं. वे दुर्गंध मज्जा नामक धातुसे भरी हुई हैं. और तीन से श्री संधि है. १३५ ( "हारूण णवसदाई सिरासदाणि य हवंति सत्तेव ॥ देहम्मि मंसपेसीण हुंति पचेत्र य सदाणि ॥ १०२८ ॥ मांसपेशीशिर स्नायुशतान्यंगे यथाक्रमम् ॥ पंच सप्त नव प्राज्ञाः सर्वदापि प्रचक्षते ॥ १०५५ ॥ विजयोदया- हारुण पायसदारं स्नायूनां नवशतानि सिरासवाणि य भवति ससेष सिराणां सप्तशतानि । देहम्मि मंसपेसीण इयंति पंधे य सहानि पंचशतानि शरीरे मांसपेश्यः ॥ मृत्यारा - हारूण तिहारूण स्नायूनां । छिरा शिराः ॥" अर्थ – देहमें उसे स्नायु हैं तथा सातसें सिरा हैं और इस शरीर में पांचसे मांसकी पेशिया हैं. ' चत्वारि सिराजालाणि हुंति सोल्स य कंडराणि तहा ॥ छच्चेव सिराकुच्चा देहे दो मंसरज्ज् य ।। १०२९ ॥ शिराजालानि चत्वारि कंडराणि च षोडश ॥ शिरामूलानि षट् चैव मांसरज्जुद्वयं तथा ।। १०५६ ।। माश्वा १०७३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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