________________
आधाम:
मनमना
नलाग--वरलत्तणे इनि--भभरेज म्मरेत् । अपाणम्मिवि आमन्यपि । गढ़े गल्छन । णिवेद वैराग्य । परहिम्पीशरीगदी ।। द्भिः ॥
अर्थ--मनुष्य वालपन में जो जो कृत्य करता है उसकी यदि उस को स्मृति होगी तो वह अपनी भी म्लानि करेगा किर अन्य के विषयमै अर्थात् स्त्रीके शरीर वगैरह में उसको ग्लानि होगी इस विषय में कहना ही
- - SRITAMALPATIALASEAAddbAARADARAMARADASE
कुणिमकुडी कुणिमेहि य भरिदा कुणिमं च सवदि सव्यस्तो ।। ताणं व अमेज्झमयं अमेझभरिद सरीरमिणं । १.२६ ॥ अमेध्यस्थ पुरी गानाशनारे अमेध्य सवते छिद्रं अमेध्यमिच भाजनम् ।। १०५२ ॥
इति वृद्धिः ।। विजयोदया-कुणिमकुडी कुथिता कुडी, फुर्णिमेहि भरिदा फुथितमरिता । कुणिमं या सवदि सम्धसो कुधित सर्वतः सपति समंतात् । ताण व अमेझमय तामिव अमेझमय अमेध्यमिव 1 अमेज्यभरिद अमेध्यपूर्ण । परीरमिम शरीरमिदं ॥
अवयवान्नाथाभिचतुर्दशभिर्व्याचक्षाणः प्रथममवयविनं लिर्दिशति
मूलारा-कुणिमेति धुणिमकुडी कुणिग कुथित दुर्गध नन्मयगृहं । इम इदं मानवीय । एनां गाथा श्रीविजयाचार्य: पाचात्यमत्र पठति ।।
अर्थ यह शरीर दुर्गध है, दुर्गध वस्तुऑम भरा है. इसम दुर्गध म्बद मुत्रादि पदार्थ निकलते रहते हैं. यह शरीर विष्टासे भरी हुई वृणकी बनी झोषीक समान दुर्गंध है. पृद्धिक्रम निरूप्य शरीरावयवानाच
अट्ठीणि हुँति तिण्णि हु सदाणि भरिदाणि कुणिममजाए ॥ सब्वम्मि चेव देहे संधीणि हवंति तावदिया ॥ १०२७ !!
-