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________________ मूलारावना १०६७ मूलारा --- दंतेहिं इति षीणं पिच्छिलं मिलि संतं मिश्रितं सत् । भादाइरिदं मातृभुक्तम् । जिस आहारसे उसका शरीर पुष्ट होता है उसका वर्णन आचार्य करते हैं. - अर्थ — दांतों से चबाया गया, कफसे गीला होकर मिश्रित हुआ ऐसा माताने खाया हुआ अक्ष उदरमें पिसके मिश्रणसे कडवा होता है. वमिगं अमेझसरिसं बादविओजिदरसं खलं गन्भे ॥ आहारेदि समता उवीरें थिष्पंतगं णिच्च ॥ १०१६ ॥ समीरेण कृतम् ॥ ऊर्ध्व कटुकमाति विगलंतमसौ रसम् ॥ १०४३ ॥ विजयोदया - वमिगं यांतं । अमिसरिसं अमेध्येन सदृशं : वाइथियोजिदरसं खलं वातेन पृथतं रसं खलभाग आहारेदि णिचं नित्यं गर्भस्पो भुंक्ते । समंता समंतात्। उवरिं उपरि थिष्यंतमं चिगलद्विदुकं तेनान्नर समाहरतीति ज्ञायते ॥ मूलारा - बभियं इति — बमियं अन्तरच्छर्दिर्त । वादविजोजिंदरसक्खलं वायुष्टथस्कृतरसखळभागं । आहरदि भुंक्त गर्भस्थो मनुष्यः । सभतो सततः । सर्वागैरित्यर्थः ॥ श्रियंत विलद्विदुकं । एतेनान्नरसमाहरतीति ज्ञायते । उक्तं च अंधसो मातृस्य ष्ममिश्रस्य पिच्छिलं ॥ चूर्णितस्य भृशं तैः पित्तसंगमुपेयुषः || अमेध्यसदृशं वांतं समीरेण प्रधक्कृतं ॥ ऊर्ध्व कटुकमाति विगतमसौ रसं ॥ अर्थ - वांति और विशके समान, बातसे जिसका रसभाग और खलभाग अलग किया गया है ऐसे आहारका ऊपरसे और चारो तरफसे एक एक बिंदु जब गिरने लगता है तब वह गर्भस्थ जीव उसको नित्य ग्रहण करता है. अगलक शरीरमें नाभि उत्पन्न नहीं होती है तब तक यह जीव चारों तरफसे मातृमुक्त आहार शरीरके द्वारा ग्रहण करता है. भावासा ६ १०६७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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