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________________ मूलाराधना आश्वास गम्भो हु अग्र पाठे आमाशयावधः पक्वाशयाचोर्द्ध नवदशमासान जरायुप्रच्छादितो गर्भ आस्ते इति सूत्राधैः ॥ गम्भा- | शायम्मि इति पाहे नगे नरदेवो वा गर्भ तितीति व्याख्येयं । पवमासे उपलक्षणादशापि ।। गर्भ में चालक किस स्थान में रहता है इसका वियेनन अर्थ--आमाशय और पक्वाशय इन दोनों के बीचमें जालेक समान मांस और रक्तसे लपेटा हुआ वह गर्भ नद महिने तक रहता है. ग्वाया हुआ अन्न उदराग्निये जिस स्थानमें थोडासा पचाया जाता है वह स्थान आमा शय कहा जाता है. और जिस स्थानमें पूर्ण पकाया जाता है वह स्थान पक्काशय है. ये दोनो स्थान अपवित्र है. पक्काशगक ऊपर और अपक्काशयके नीचे अर्थात दोनोंके बीच में गर्भका स्थान रहता है. गाथामें विमास' यह शब्द उपलक्षणवाची है. इससे दस मासका भी ग्रहण होता है. अर्थात् कोई गर्भ दसमासतक भी माताके उदरमें रहता है. अशुचिस्थाने अवस्थितः स्वल्पकालं यदि जुगुप्स्यते चिराधमियतः कथमयं न अगुप्सनीय रस्मायष्ट अमिता असमझे मासवि समस्वभत्ति होदि हु विहिंसणिज्जो जदि वि हु णीयल्लओ होज ॥ १.१३ ।। मासमेकं स्थितोऽध्यक्ष वर्षामध्ये जुगुप्स्यते॥ निजोऽपि न कथं गर्भ वांत नववश स्थितः ॥१.४१॥ इति क्षेत्रं ॥ विजयोदया-वमिदा अमेज्झमजमे यांतस अमेध्यस्य मध्ये । मासपि मासमाधपि समक्खमस्थिदो स्वप्रत्यक्षतया स्थितः पुरुषः । खुशब्द पयकारार्थः स च क्रियापदात्परो प्यः । विहिंसणिऊजो इत्यतः परतः । विहिंसजीओ होदि इति जुगुप्सनीय पत्र भवति नाजुगुप्स्य इति यावत् । जदि वि हुणीयलयो होज यद्यपि बंधुभवम् ॥ . स्वल्पकालं यशमेश्यमध्यमध्युषितो बंधुरपि जुगुप्स्यते तत्कथमयं देह श्चिरं तत्र स्थितो न जुगुप्म्य इति गाथाद्वयेनाह मूलारा-अमिया इति-अमिया अमेझमज्झस्मि तस्य अमेध्यस्य च मध्ये । ससमक्खं आत्मप्रत्यक्षं । दि वि यद्यपि । शिवलओ बंधुः ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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