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________________ मूलाराधना आश्वास HARSHA णलया बाहू य तहा णियंत्र पुट्ठी उरो य सीसोय ॥ . अव दु अंगाई देहे सेसा उबंगाई॥ ----पांपबे मासन उस मांसपेशीको पांच पुलक अर्थात् पांच अंकुर उत्पन्न होते हैं. इनसे नीचके दो अंकुरोंसे दो पैर, उपरके तीन अंकुरोमम बीचके अंकुरम मस्तक और पावके दो अंकुरोंसे हार्थोकी उत्पत्ति होती है. इन अवयवोंकी यह अंकुर पूर्वावस्था है. तदनंतर छठे मासमें हाथ, पाय और मस्तककी रचना होती है और उपांग - आँख, कान, नेत्र इत्यादिक अंगोंकी रचना होती हैं. इसप्रकार मर्भस्थ बालकक अवयवों की रचना है. मासम्मि सत्तसे तस्स होदि चम्मणहरोमणिप्पत्ती ॥ फंदणमट्ठममासे शवमे दसमे य णिग्गमणं ॥. १०१०॥ धर्मरोमाणि जागते मासे तस्यात्र सम्प्लमे ॥ .. ..पंवोष्टमे विनिर्माण नषमें वशमे ततः ।। २०३८ ।। विजयोव्या-मासम्मि सत्तमे सप्तमे मासे । तस्स तस्य गर्भस्थस्य । चम्मणहरोमणिप्पत्ती चर्मनरवरोमनिष्पतिभवति । फंदणमकममासे स्पंदनमीपश्चलम भएम मासे । जयमे वसमे य णिमामण नषमे वशमे चोदरा निर्गमनं भवति ॥ मुलारा-मासम्मि इति दणं, संचलन नियामणं मातृ रुद्राभिःसरणं प्रसुतिरित्यर्थः ।........ ... . इसके अनंतर अर्थ-सांतवे- महिनमें उम् गर्भक अवयों पर चर्म और रोमकी उत्पत्ति होती है, और हाय और पैर के नख उत्पन्न होते हैं. आठमें मासमें उस मर्भ में चलन वलन होने लगता है. नववा और दसवा इन दो महिना में गर्भस चालक बाहर आता है अर्थात उसका जन्म होता है.'' T ha! NAHI, Motiy सब्बासु अबस्थासु वि कललादीयाणि ताणि सव्वाणि ।। असुईणि अमिज्झाणि य विहिंसिणिज्जाणि णिञ्चपि ॥ १.११ ॥ १०६३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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