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________________ राधना आभासः परिणामिनामीणमते विशि परिवारकारच जनक परिणामिकारणं उपादानकारणं । तल्लक्षणं यथा-- त्यतात्यकात्मरूप यत्पौर्वापर्येण पर्तते ॥ कालत्रवेऽपि तद्रव्यमुपादानमिति स्मृतम् ।। अमेघदपुण्णगोव अमेध्यघृतपूरक इष । तथा चोक्तम् शुक्रशोणितमंगस्य यदुपादानकारणं ।। .. अशुच्यंग ततो यबदमेध्ययतपूरकः ।। प्रयोगः--यदशुचि परिणामिकारण तदशुचि, यथाऽमेध्यंघृतपूरकः । अशुचिपरिणामिकारणं च शरीरं तस्मादशुचि। देहके बीजका दो गाथाओंसे वर्णन-- अर्थ-जिससे देहकी उत्पत्ति होती है ऐसा यह वीर्य और रक्त अपवित्र है. अतः इनसे उत्पन्न होनेवाला देह पवित्र कैसे हो सकता है ? रक्त और वीर्यसे ही शरीरका परिणमन होता है अतः शरीर अपवित्र है. विष्ठासे धने हुए घृतपूरके समान शरीर अपवित्र है. अपवित्र पदार्थोंका परिणमन जिसके कारण है वह पदार्थ अपवित्र होता है. जैसा अपवित्र विष्ठाका घृतपूरक अपवित्र होता है वैसा शरीर भी अपवित्र कारणोंका ही परिणमन होनेसे अपवित्र है, ऐसा इस गाथाका अभिप्राय है दई विहिंसणीयं अमेज्झामिव संकुदो पुणो होज्ज ॥ ओजिग्घिदुमालबुं परिभोत्तुं चावि तं बीयं ॥ १००५ ॥ द्रष्टुं घृणायते देहो वक़राशिरिव स्फुटम् ॥ स्पष्टनालिगितुं भोक्तुं लडीजो भुज्यते कथम् ॥१०३३॥ विजयोदया-बलु पि य द्रष्टुमपि । विहिसणीय जुगुप्सनीयं । अमेझमिय अमेध्यमिष । संफुदो पुणो होज मोडिग्घिg कुतः पुनर्भवेदामातुं । माल माकिगितुं । परिभोक्तुं याषि परिभोक्तुं चापि पीज तत् शुकशोणिताच बीजं । तत्परिणामत्याच्छरीरमपि तदेव बोअमिदं शरीरमिति भत्या वीजमिति उक्तं । १०५२ FACE SHOTOS
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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