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________________ मूलाराधना आश्वासः २०४४ बाहुभ्यां जलधेः पारं तीर्खा याति परं भुवम् ॥ न मायाजलधे स्त्रीणां बहुविभ्रमधारिणः ॥ ९९१ ॥ विजयोदया-गरिछज्ज गच्छेत् समुनस्य अपि पर पारं ती| महाबलः । मामाजलपनितोदधिपारं नैष गर्नु शक्नोति ॥ मुलारा--तरितु तीळ । ओधथलो महाबलः । बाहुबल इत्यन्ये ॥ अर्थ-सामर्थ्यवान् मनुष्य समुद्रका दूसरा किनारा प्राप्त कर सकता है, परंतु कपटरूपी जल जिसमें है ऐसा स्त्रीरूपी समुद्रको तीरकर दूसरा किनारा पुरुषके द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है. रदणाउला सवरधाव गुहा गाहाउला च रम्मणदी । मधुरा रमणिज्जावि य सढा य महिला सदोसा य !! ९७५ ।। सव्याघेव गुहा रत्नदुभेदैविराजते ।। रमणीया सदोषा च जायते महिला सवा ॥ ९९२ ।। विजयोवया-रदणाउला रखसंकीर्णा सव्याघ्रा गुहेव रम्या नदी ग्राहाकुलेच मधुरा रम्या शठा सदोषा च | यनिता। मूलारा--- रयणाउला रत्नाकीयो । वा यथा । गाहाउला मकरादिसंकुला रम्मणदी रमणीयापगा ।। अर्थ-पर्वतकी रत्नपूर्ण गुहा सुंदर दीखती है परंतु उसके अंदर व्याघ्रका निवास होनेसे बह भयानक भी है. नदीका स्वरूप ऊपरसे रमणीय दीखाता है, परंतु अंदर मकरादि क्रूर अंतुओंका निवास होनेसे वह मयावह है. वैसे सी भी मधुर और सुंदर होने परभी कपटमय और दोषोंसे भरी हुई होनेस अहित करने वाली ही है. वि पि सम्भाव पडिवजदि णियडिमेव उदि॥ मोधाणुलुक्कमिच्छी करेदि पुरिसरस कुलजावि ॥ ९७६ ॥ नष्ठमपि सद्धार्थ चक्रधीः प्रतिपयते। गोधान्तद्धि विधत्ते सा पुरषे कुलपुश्यपि ॥ ९९३ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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