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________________ मूलाराधना भावासः मूलारा-मद गलो मत्तः ।। अर्थ--आतशय क्रुद्ध हुआ काला सर्फ, दुष्ट सिंह और उन्मत्त हाथी को मी मनुष्य पकडने में समर्थ हैं. परंतु दुष्ट स्त्रीका मन पकडने में के समर्थ नहीं हैं. सक्कं हविज दुई विजुज्जोएण रूवमच्छिम्मि ॥ ण य महिलाए चित्तं सक्का अविचंचलं णाद् ॥ ९६७ ।। रूपं सतमसौ द्रष्टुं विद्योतेन पार्यते ॥ वेतशलस्वभावानां योषाणां न कथंचन ॥ ९८५॥ विजयोत्पा-साकं दवेज्ज विद्युयोतेन भमिथं रूपं द्रष्टुं शक्य न.पुनर्पुतिचिसमतिस्त्राएल अवमतुं शक्त्रम्। मूलारा-अछिलि नेत्रे स्थितं । नेत्ररूपमित्यर्थः । अच्छीहि इति पाठ अक्षिभिर्यस्थः कस्यचिगुपं विद्युत्प्रकाशेन द्रष्टुं शक्यमिति. व्याप्येयम् ॥ अर्थ-विजलीके अत्यल्प प्रकाशसे भी नेत्रका रूप देखना शक्य है परंतु अतिशय चंचल ऐसा तरुण खीका मन जान लेना अति कठिन है. अगुवत्तणाए गुणवत्तणेहिं चित्तं हरति पुरिसस्स ।। मादा व जाव ताओ रत्तं पुरिसं ण याणति ॥ ९६८ ॥ अलिएहिं हसियवयणेहिं अलियरुयणेहिं अलियसवहेहिं ॥ पुरिसस्स चलं चित्तं हरंति कवडाओ महिलाओ ।। ९६९ ॥ महिला पुरिसं वयणेहिं हरदि पहणदि य पावहिदएण ॥ वयणे अमयं चिढदि हियए य विसं महिलियाए ॥ ९७० ।। १०४
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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