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________________ मूलाराधना आमासा अर्थ-स्त्रिया परपुरुषमें आसक्त हुए अपने हृदयको परावृत्त नहीं करती है, व्याघ्री जैसी अपकार न करने पर भी मनुष्यको मार डालती है वैसे दुष्ट बिया निरपराधी पतिको भी मारती है. जैसे शत्रु अपने प्रति पक्षीका अशुभ होनेका ही चिंतन करता है. वैसे ये दुष्ट स्त्रिया भी अपने पतिका अशुभ कप होगा इसका ही विचार करनी हैं, शत्रु प्रतिपक्षका धन नष्ट होनेका चिंतन करता है विपत्तिओंका विचार करता है वैसे हि बुष्ट विचार ये दुष्ट स्त्रिया अपने मनमें करती है. T संझाव णरेसु सदा ताओ हुति खणमेत्तरागाओं ।। बादोष महिलियाण हिदयं अदिचंचलं णिच्चं ॥ ९६१ ॥ शंपेव चंपामारी संध्येच क्षणरागिणी ।। छिद्रार्थिनां भुजगीव शर्वरीव तमोमयी ॥ ९७९ ॥ चिजयोदया-संसाव गरेसु सदा तामओ हॉति संध्या व नरेषु सदा ता भवति । खणमित्तरागात्रो अल्प कालरागाः । अस्थिररामता नाम दोपः प्रकटितः । यथा संध्याया रक्तता चिनाशिनी । महिलियाण हिदयं अदिचंचल णि । खीणां हुश्यं अतिचंचल नित्यं । किमिव बादो घ वात रब । मूलारा-रागाओ रामः प्रीति नावर्णश्च ॥ अर्थ-संध्याकालका लालरंग क्षणमात्र टिकता है अनंतर वह जैसा नष्ट होता है वैसी स्त्रियोंकी प्रीति क्षणमात्र रहती है अर्थात अल्पकाल प्रेम करना यह दोष त्रिओंमें रहता है. स्त्रियोंका हृदय हमेशा वायुके समान अतिशय चंचल रहता है. जावइयाई तणाई वीचीओ वालिगात्र रोमाई ॥ लोए हवेज तत्तो महिलाचिंताई बहुगाई ॥ ९६२ ॥ सिकतातृणकल्लोलरोमाणि भुषनत्रये ।। यापन्ति सन्ति सावन्ति मानसानि मृगीरशाम् ॥ ९८० ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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