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________________ EXAM मूलाराधना आधामा मालाब मिलाय गवगंधा मालेव म्लाना नपुगंधा। अपहतरस इक्षुः शोभारहितनिगंधमाला च यथाऽप्रिया। योधर्म, धर्म, भक्तिभ पुंसोऽतिशयकतवपरये मैवासाषिच्यते स्त्रीमिः॥ मूलारा—सो घेष स एव । यो युवस्वे धनित्वे नीरोगत्वे च सति प्रियः । से तस्याः । वेस्सो द्वेष्यः । उकडू इनुः । मिलादगदगंधा म्लाना नष्टगंधा च ॥ अर्थ-पुरुष तरुण, श्रीमान और नीरोगी जबतक रहता है तबतक वह खीको प्रिय लगता है परंतु वही जब पृद्ध, दरिद्री और रोगी बनता है तब वो उसका द्वेष करती है. जैसे रसहीन ईख मनुष्य त्याग देते हैं अथवा शोभारांहेत निगधम्लानपुष्पांकी माला जैसी लोक त्यागते हैं बस धनहीन, युद्ध और रोगी पतिकी स्त्री इच्छा नहीं करती है. तारुण्य, धन और सामर्थ्य ये चाते पुरुपमें विशेषता उत्पन्न करती हैं. जिसमें ये बातें पायी जाती हैं वह स्त्रीको प्रिय होता है. इनका नाश होनेसे वह उनको अप्रिय लगता है. महिला पुरिसमवण्णाए चेव वंचेइ णियडिकवडेहि ॥ महिला पुण पुरिसकदं जाणइ कण्डं अवण्णाए ॥ ९५७ ॥ वंचयन्ति नराचार्यः समस्तानपि हेलया ! जाति वचनं पौलं तदीयं न नराः पुनः ॥९७४ ॥ विजयोदया–महिला पुरिसमवण्णार यनिता पुरुषमनादरेष यंचयति । निकृत्या कपटतया च सीभिः कृता निकृति वंचना शठतां च न जानति पुमांसः । महिला पुण शमलोचना पुनः जाणदि जानाति । किं कपटशतं पुरिसकद पुरुषेण कृतं । अषणाए अधमया भौवासीन्येनैव भक्लेशेनेति यावत् ॥ मूलारा- अषण्णाए थेष अवजय अशेनैवेत्यर्थः । णियहिकपडेहि मृषामितजल्पितझपयकोपकथाभिः स्त्रीभिः कृतो निकृति वंचना कपदं प शठतां नरा न जानंति इति भावः ॥ अर्थ-श्री पुरुषको आयास के पिनर फसाती है. अर्थाद शूटा हास्य, असत्य माषण, शपथ, असत्य कोप, और मधुर भाषण इत्यादिकोंसे वे पुरुषको अनायाससे फसाती है. स्वीका किया हुआ कपरप्रयोग पुरुष नहीं जान सकते हैं. परंतु स्त्री पुरुषके कपट तत्काल जान लेती है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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