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________________ जागवता 35 दादा आलविशे भवितः ॥ बीरमदीए सुलगद चोरदोडिगए वाणियओ | पदो दत्तो य तह हिण्णो ओडोति आलविदो ॥ ९५९ ॥ वीरस्थिस्तेन विना निजः ॥ ओम पापयेत्युदितं मृषा ॥ ५६८ ॥ मुहा—यहूदी लम्बरदाधरया | वाणियो यता तथा । दियो होति गोपुच्छेदोऽनेन कृतः इति च । मार दी दसनामा ब्रिणो उति अनेन छिन्नो मम इति आलविदो आतं प्राचिनः ॥ अर्थ -- शूलपर चढ़ाये हुए चोरके द्वारा जिसका ओष्ठ खंडित किया गया था ऐसी वीरमति नामकी स्त्रीने दत्तनामक मेरे पतीने मेरा ओष्ठ छिन कि में ऐसा बार और उसके द्वारा अपने पतीका उस दुष्टाने घात करवाया. वग्धविंसचोरअग्गी जलमत्तगयकण्हसप्पसत्तू ॥ सो वीसं गच्छदि । वीसंमदि जो महिलियासु ॥ ९५२ ॥ या विषे जले सर्पे शत्री स्तेनेऽनले गजे ॥ स विश्वसिति नारीणां यो विश्वसिति दुर्मनाः ॥ ९६९ ॥ विजयोदया - बग्घविसन्चोर अग्गी जलम लगय किण्ड सप्पस ध्याघ्रे, वित्रे, चोरे, अनौ, जले, मत्तगजे, कृष्णस, शत्रौ न । सो विस्संभं गच्छदि स विश्रमं गच्छति । त्रिस्तंभदि जो महिलियासु विस्रं यः करोति वनितासु । मूलारावीसंभदि विश्वसिति । अर्थ- जो पुरुष स्त्रियोंपर विश्वास करता है वह वाघ, विष, चोर, आग, जलप्रवाह, मदवाला हाथी. कृष्णमर्प और यात्रु इनके ऊपर विश्वास करता है ऐसा समझना चाहिये. बाबास १०३२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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