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मूलाराधना
आश्वासः
प्रवृत्तिमभिलमन्त्यः । पदिगो वधं कुब्यति पत्युर्वधं कुर्वन्ति, सुदस्स श्रुतस्य, ससुरस्स श्वशुरस्यापि । पिदुणो या पितुर्ग वर्ध कुर्वन्ति ।।
मूलारा-वीसत्यं स्वरसावर्ति ॥
अर्थ--स्वच्छंद प्रवृत्ति करनेवाली खिया निरपराधी पतिका, अच्छे ज्ञानका; अपने ससुरका और पिता । काभी घात करती है. जो जो अपने स्वच्छंद प्रवृतांमें बाधक होगा ऐसा समझती है उनका २ वे घात करती हैं.
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सकार उवकारं गुणं व सुहलालणं च हो वा ॥ मधुरचयणं च महिला परगदहिदया ण चिंतेइ ॥ ९४८ ॥ उपकारं गुणं स्नेहं सत्कार सुखलालनम् ॥
न मन्यते परासक्ता मधुरं वचनं स्त्रियः ।। ५६५ ॥ विजयोन्या-सकारं सत्कारं सन्मानं । उक्यारं उपकार, गुण कुलरूपयौवनादिकं गुणं च पत्यु । सुहलालणं मुखेन पोषणं च । हो पा सेहं च । मदुरवरणं च मधुरवचनं च । महिला युवतिः । परगदहिदया परपुरुषानु रक्तषिता । चितेर न चिंतयति ॥ ___ मूलारा-गुणं फुलरूपयौवनादिकं पत्युः । मुहलालणं सुखेन पोषण ।
अर्थ-आदरसत्कार, उपकार, गुण, कुल, तारुण्य और सौंदर्य इत्यादि गुणोंसे पतियुक्त होनेपर भी-यदि Sil खी जव परपुरुषपर अनुरक्त होजाती है नव पतिके इतने गुणोंका कुछभी विचार नहीं करती है. पतीने बड़े प्यार में
उसका पोपण किया, उसने स्नेह दिखलाया और मधुर वचन भी बोले तो भी इन पानोका वह कुलभी विचारकर ती नहीं है,
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साकेदपुराधिवदी देवरदी रज्जमुक्खपन्भट्टो ॥ पंगुलहेतुं छूडो णदीए रक्षाए देवीए ॥ ९४९ ॥