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मुलाराधना
भाषामा
विजयोन्या-अदिलहुयगे वि दोसे स्वल्पेपि दोषे कृते सुरुतशतमप्यगणय्य पति, भात्मानं, कुलं, धनं च नाशयति युवतयः ॥
मूलारा-अदिव अतीव । सुगदसदं उपकारशत ।
अर्थ-पतिके द्वारा छोटासा भी अपराध हुआ तो उसके हजारो उपकारभी वह भूल जाती है और उसका, कुलका, और धनका और अपनाभी नाश कर डालती है.
आसीविसो व्व कुविदा ताजो रेभ णिसाचाओ। रठ्ठो चंडो रायाव ताओ कुवंति कुलघाद ॥ ९४६ ।। आशीविषा इव त्याज्या दरतो नीतिहेतवः ।।
दुष्टा नृपा इब क्रुद्धास्ताः कुर्वन्ति कुलक्षयम् ॥ ५६३ ।। विजयोदया-आसीविसो ब्ब अशीविष इव कुपितस्ता दूरेण दौकितुं न शक्याः | रुएवंडो राजध ताः कुर्वन्ति कुलग्यतं ॥
मूलारा-दूरेण त्याज्या इति शेषः शिहुदपावाओ प्रच्छन्नपातकाः । दूरेणादागिद् सक्का दूरादपि नाश्या इत्यर्थः ।
अर्थ---भयंकर सर्पका जैसे दूर से ही त्याग करना हितकर है वैसे दुष्ट खियोंका दूरसे ही त्याग करना कल्याण करक होता है. जसे क्रुद्ध राजा अपराधीके कुलका समूळ नाश करता है वैसे दुष्ट खियां भी अपने पाके बलका पूर्ण नाश करनी है.
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अकदम्मि बि अबराधे ताओ वीसच्चमिच्छमाणीओ ।। कुब्वति वहं पदिणो सुदस्स ससुरस्स पिदुणो वा ।। ९४७ ॥ अकृतप्यपराधे ता नीचाः स्वच्छंदवृत्तयः ।।
निघ्नंति निघृणा:पुत्रं श्वशुरं पितरं पतिम् ॥ ९६५ ।। विजयोदया-भकदम्मि वि अकृतेऽपि । अवगथे अपराधे । तामो ताः । चौसम्छमिच्छमाणीश्रो स्वेच्छा