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आश्वास
विजयोन्या-महिलासु सीपुन संति विभप्रणयाः, परिचयः, लगना, संदश्व | सहसा परगतचित्तारताः मनरावनाकु लं जहांन ।
माग-- प्रसादः । दणदा कृतज्ञता । सकुन् स्वकुलं कुलीने या! १०२८
अर्थ--त्रियों में विश्वास, प्रसाद, परिचय, कृतजना अर्थान किये उपकागेका स्मरण रखना-कृतस न जनना, और स्नह ये गुण नहीं रहते हैं. चे जब परपुरुषासक्त हो जाती हैं तब अपने हिन करनेवाल पतिकाभी छोड़ दनी है. अपनी कुलीनताको छोरती हैं. नीचोंका हाथ पकडती हैं.
पुरिसस्स दु वीसंमें करेदि महिला बट्टुप्पयारेहिं ।। महिला वीसभेदु बहुप्पयारेहि धि ण सक्का ॥ ९४४ ॥ विसंभयन्ति ता मत्य प्रकारैर्विविधलघु ।।
विसंभः शक्यते कर्तुमेतासां न कथंचन ।। ९६१ ।। विजयोदया-पुरिसस्स दु बीसंभं पुरुषस्य विस्रमं जनयंति खियो बहुभिः प्रकारयुक्तीविनंभ नतुं न शक्ताः पुमांसः॥
मूलारा-वीसंभ विश्रासं नेतुं ॥
अर्थ-अनेक कपट प्रयोगास वे धुरुपके मन में विश्वास उत्पन्न करती हैं अर्थात अपने हावभाव, मधुर भापण. अगरहसे अपने में अनुरक्त करती हैं, परंतु पुरुष उसको अपनेमें अनुरक्त नहीं कर सकता है
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अदिलहुयगे बि दोसे कदम्मि सुकदस्सहस्समगणंती ॥ पइ अप्पाणं च कुलं धणं च णासंति महिलाओ ॥ ९४५॥ स्वल्पेऽपि विहित दोषे कृतदोषसहस्रशः ॥ उपकारमयज्ञाय स्वं निम्नन्ति पति कुलम् ॥ ९६२ ।।
समान