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________________ आभास मूलाराधना १८२७ शठस्ते खीजनस्तीक्ष्णैर्नाम्यन्ते क्षणमात्रतः ।। नितांतकुटिलीभूतैरंकुशैरिच दंतिनः ॥ ९५८ ॥ विजयोन्या-ते तारिसगा माणा तानि तथाभूतानि मानानि अचमथ्यन्ते दुष्टस्त्रीभिः । यथा अंकुशेन निगद्या कार्यते इस्ती अतिबलोऽपि ॥ मूलारा-ओमकिछज्जति विनाश्यते । णिसियाविज्जदि उपवेश्यते । अर्थ--ऐसे पुरुषोंकाभी महामान दुष्ट खियोंके द्वारा ध्वस्त नष्ट किया जाना है. अर्थात अपने हीनाचार से ब अपने पतीका अमिमान धृलमें मिलाती है. जैसे हाथी बढाभी हो तोमी छोटा अंकुश उमको बलात्काम्मे जमीनपर बिठा सकता है. आमीय महाजुदाई इस्थिहेर्दु जणम्मि बहुगाणि ॥ भयजणणाणि जणाणं भारहामायणादीणि || ९४२ ॥ आसन्रामायणादीनि स्त्रीभ्यो युद्धान्यनेकशः॥ मलिनाभ्योऽब्दमालाभ्यः सलिलानीव विष्टपे॥ ९५९ ।। विजयोदया-आसीय महाजुद्वाणि आसन्महायुद्धानि जगति स्त्रीनिमित्तानि बहूनि भय जननानि जनानी भारतरामायणादीनि । मूलारा-आसन वृत्तानि । अर्थ-इस जगतमें इस स्त्रीके लियेही भयानक रामायण, महाभारतके समान मनुष्योंका महा क्षय करने वाले अनेक चडे युद्ध हुए हैं, महिलासु णत्थि वीसंभपणयपरिचयकदण्णदा हो ॥ लहुमेव परगयमणाओ ताओ सकुलंपि य जहंति ॥ ९४३ ॥ विधेमसंस्तबस्नेहा जातु संतिन योषितः॥ . त्यजन्ति वा परासक्ताः कुलं तृणमिव द्रुतम् ।। ९६० ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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