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भूमागता
मूलारा-म्पाटम ॥
H: आश्वासः अर्थ-इस लोकमे भी करारपिंग नामक राजपुत्र कामवश होकर महान् दोपसे दूषित हुआ. और मर- II मोत्तर नरकमें उत्पन्न हुआ. ( आराधना कथा कोषमें इसकी कथा प्रसिद्ध है.)
एदे सम्वे दोसा ण होति पुरिसस्स बंभचारिस्स ॥ तबिवरीया य गुणा हवंति बहुगा विरागिस्स ॥ ९३६ ।। भवंति सकला दोषा नैवामी ब्रह्मचारिणः ।।
संपचंते गुणाचित्रास्तद्विपक्षा विरागिणः ॥ ९५२ ॥ 'बिजयोदया-ये सव्वे एते सबै योषा न भवन्ति ब्रह्मवारियः पुंसः । तद्विपरीताश्च गुणा भवन्ति बडयो विरागस्य॥
एवं कामदोषान्प्रदय तदभावं प्रकृते भाषयतिमूलारा स्पष्ठम् ।।
उपर्युक्त सर्व दोष ब्रह्मचारी पुरुषको स्पर्श नही करते हैं. फामसेवनसे विरक्त ऐसे ब्रह्मचारीमें काम || दोषसे विरुद्ध बहुत गुण निवास करते हैं.
अर्थ-जिसका रागभाव नष्ट हो चुका है ऐसा ब्रह्मवारी मुक्तजीव के समान प्रेक्षक होकर दीत्र कामाग्नीस दग्ध होने वाले इस सर्व जगको देखता है. कामाम्नीके कष्टसे ब्रह्मचारी मुक्त होता है. और चीतराग होता है. अर्थात् काम विकारस दूर रहना यही सच्चे मुख की प्राप्तिका उपाय है. कामकृत दोणका वर्णन समाप्त हुआ.
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* कामग्गिणा धगधगतण य डझंतयं जगं सव्वं ॥
पिच्छइ पिन्छअभूदो सीदीभूदो विगदरागो ॥ ९३७ ॥ कामावना कुषफलानि निषेवमाणा रम्ये नियविषये ललनानदीनाम ।। विश्रम्य चारुवदनाम्बु निपीयमानाः सौख्यन मारकपुरी प्रविशंति नीचाः ॥९५३॥
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