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मुलाराधना
आश्वास:
मूलारा-पष्टम् ॥ - अर्थ-परखी सेवन जिसने पूर्व जन्ममें किया था उसकी पत्नी, बहिन, माता और लडकी लक्षावधि जन्मामें अपकीर्ति करनेवाली, दुःख देनेवाली और हमेशा व्यभिचारिणी हो जाती है.
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होइ सयं पि विसीलो पुरिसो अदिदुब्भगो परभवेसु ॥ पावइ वधबंधादि कलह णिच्च अदोसो वि ॥ ९३६ ॥ विशीलो दुर्भगोमुत्र जायत पारदारिकः ।।
निदोषोऽप्यनुते यंध संक्शं कलहं वधम् ॥ ५५० ।। विजयोदया-ठोवि स पि भवति स्वयमपि विशीलः, पुरूपी धर्मगच प्रामीति नित्यं च वधधं आना सकलहं च दोषोऽपि।
परस्त्रीभाजो विशीलभावादिलाभमाह--
मूलारा स्पष्टम् ।। . अर्थ- वह परदारसेवी पुरुष भी विशील-शीलवत रहित होता है और करूप होता है. निदोष होनेपर भी वध, बंध कलह इत्यादि दुःखोंको वह प्राप्त होता है. :
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इहलोए वि महल्लं दोसं कामरस वसगदो पत्तो ।। कालगो विय पच्छा कडारपिंगो गदो गिरयं ।। ९३५ ॥ महान्तं दोषमासाद्य भवेऽप्र स्मरमोहितः ॥
मृत्वा कहारपिंगोऽगाच्छ्वनं दुःसहवेदनम ।। ९५१ ।। विजयोदया-इहलोए वि महल कहार पंगो इहलोकेऽपि महान्तं दोषं प्रातः कामवशंगतः । कालं त्या पश्चान्नरकेषु प्रविष्टः | चाच्यमत्रापानकम् ॥
उक्तमेवार्थमाख्यानेन यापयन्नाह -
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