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________________ परखीका उपमोग लिया था वह पुरुप इस जन्ममें स्त्रीपर्यायको प्राप्त होता है तब वहमी बलात्कारसे मोगा जाता है. -मूलारापना आश्वास १०२२ महिलावेसविलंबी जं णीचं कुणइ कम्मयं पुरिसो ॥ तह विण पूरह इच्छा तं से परदारगमणफलं॥ ९१२॥ योषावेषधरः कर्म कुर्वाणो न यदश्नुते ।। कांक्षितं शर्म तत्तस्य परदाररतेः फलम् ।। ५४८ ॥ विजयोदया-महिलासचिलंची स्त्रीवेषविलंबनएरः पुरुषो यतीचं कर्म करोति । तथापि न पूर्यते इच्छा तत्तस्य पंढत्वं परवारगमनफलम् ॥ जन्मांतरपरखीमुक्त्युमानितनपुंसकवेयी जायो अपुंसकपर्यायमापन्नः स्त्रोवेवं धारयन् यत्र तत्र कामक्रीडां कुबनपि न सृष्यतीत्युपदिशति-- मूलारा-महिलावेसविलंबी स्त्रीवेषधारी । कम्मर्य कामक्रीडा । तं से तत्षंढत्वं तस्य स्त्रीवेपधारिणः ।। अर्थ-वीवेष धारणा करनेवाला पुरुष अर्थात् नपुंसक नीच कर्म करता रहता है तो भी उसकी इच्छा पूर्ण होती नहीं. यह उसका नपुंसकपना पूर्व जन्ममें परखीसंभोग करनेका फल है. अर्थात परस्त्रीसंभोग करनेवाले पुरुष अन्य जन्ममें नपुंसक होते हैं. भज्जा भगिणी मादा सुदा य बहुएसु भवसयसहस्सेसु ।। अयसायासकरीओ होति विसीला य पिच्चं से ।। ९१३ ॥ जननी भगिनी भार्या देहजा बहुजन्ममु॥ आयासाकीर्तिकारिण्यस्तस्य संनि विशीलिकाः ।। १५ ।। विजयोदया-मज्जा भगिणी माता भार्या भगिनी माता सुता च चहुषु भवसहस्रेषु धयशः आयास कुर्वन्त्यो भवन्ति नित्यं विशीलास्तस्य । पारदारिकस्य बहुषु भवेषु भार्यादयो विशीलाः संपद्यन्ते इत्याह sna
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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