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________________ मनाराधना आश्वास अर्थ-अपनी पत्नी भी यदि मैथुनसेवन करनेसे पाप उत्पन्न होता है. तो परस्त्रीके साथ मैथन सेवन करनेसे परस्त्रीसेवी मनुष्यको तनि पापकर्मका क्यों बंध न होमा. परस्त्रीसेवन करनमें चोरी, ब्रह्मचर्यविनाश ऐसे दो दोष उत्पन्न होते हैं. परस्त्री न दी हुई वस्तु है. मादा धूदा भज्जा भगिणीसु परेण विप्पयम्मि कदे ॥ जह दुवखमप्पणो होइ साता अपारस दिगर । यथाभिद्रूयमाणासु स्वसमातृसुतादिषु ॥ हरवं संपषते खस्य परस्पापि तस न किम् ।।९४५ ॥ विजयोदया-मादा धूवा मातरि हितरि भगिन्यां परेण विधिये कृते कर्मणि पथा :समात्मनो भवति । तथा तस्यापि नरस्य कुत्रं भवति । सन्मात्राविविषये असयवहारे सति ॥ स्वस्थेव परस्यामि परेण मात्राविषु दुराचारकरणे दुःखं भवतीत्येवंविधविचाररहितः पारदारिकोऽसपाहातितीत्रपार्य संचिनोतीत्येतद्गाधान्येनाइ मूलारा-धूदा पुत्री। अर्थ-माता, लड़की, अपनी पत्नी, और अपनी बहिन, इनके साथ किसीने कुछ दुराचार किया तो से अपनेको दःख होता है वैसे अन्य पुरुषकी माता, पत्नी बहिन और लडकीयोंके साथ असदयवहार करनेसे उसकाभी दुःख होता है ऐसा समझना चाहिये. . एवं परजणदुक्खे हिरवेक्खो दुक्खबीयमज्जेदि । णीयं गोद इच्छीणउंसवेदं च अदितिव्वं ॥ १०॥ इत्यमर्जयते पापं परपीडाकृतोद्यमः ॥ श्रीनपुंसकवेचनीनगोत्रं दमतरम १४६ ।। विजयोदया-एवं परजणदु:ख एवमन्य जनवुःख निरपेक्षः परदाररतिप्रियो दुःखबीजं संचिनोति । कि? असद्धेद्य कर्म, नीचैर्गोत्रं, स्त्रीब, नपुंसकत्वं च ॥ . १. SHREE
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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