________________
मूलारावना
१०१८
अर्थ- चिरकाल परस्त्रीकी मनमें अभिलाषा करने पर भी कदाचित् उसकी प्राप्ति होती भी नहीं. अथवा कष्टसे मिलभी गई तोभी उसका भोग लेते समय मन में भय उत्पन्न होता है मनमें अविश्वास उत्पन्न होता है. जिससे सुख की प्राप्ति होती नहीं- अर्थात् मिलनेके पूर्व जैसा वह अतृप्त था वैसा मिलनेपर भी भयादि विकार उत्पन्न होने से अतृप्तही रहता है.
कहावे तधवारे संपतो जत्थ तत्थ वा देसे ॥
किं पावदि रइसुक्खं भीदो तुरिदो व उल्लावो ॥ ९२६ ॥ यत्र तत्र प्रदेश तामंधकारे कथंचन ।
अवाप्य स्वरितो भीतो रतिसौख्यं किमभुते ॥ ९४२ ॥
विजयोदया— कथमपि तमंधकारे केनचित्कारेण परबंधनां शास्था | अंधकारं संप्राप्तः । तां यत्र तत्र वा देश, शून्यगृहे शून्यायतने, अटव्यां च किं प्राप्तोसि ? रतिसौख्यं । प्रकाशे स्याभिलषितानवयवांस्तस्याः पश्यतो मृदुति शयनतले बिगतमनोव्याकुलस्य सुखं भवति । नान्यथेति भावः । किं प्राप्नोति रतिसुखं भीतः सन् राजपुरुषेभ्यस्तस्य । या संबंधिभ्यः । पश्यंति मां परे वनंति मां परपत्नीति या संभाषणं अपि तया त्वरितं किं पुना रतम् ॥
परस्त्रीसेवायां तमेव सुखाभावमुल्लिखति
मूलारा - तं परमहिलां । जत्थतत्थ शून्यगृहादौ । भीदो नत्पतिराजपुरुषादिभ्यस्त्रस्तः । तुरिदो उत्ताचकः । विवो विगत संभाषणः । प्रकासे तन्मनोज्ञावयवान्पश्यतो मृदुशयनतले तदालिंगनादि कुर्वत निर्भयनिराकुला बचनहसनादिकमनुभवत सभोगसुखं भवतीति भावः ॥
अर्थ – दुसरा को फसाकर किसी तरह अंधकारमें उसकी प्राप्ति भी हो गई तो शून्य घरमें शून्य देवालमें अथवा जंगलमें उसके साथ रममाण होनेसे क्या रतिसांख्य मिलेगा अर्थात् उसके मनमें यदि इसका पति हम दोनों को देखेगा, अथवा राजाधिकारियोंक नजर में हम आजायेंगे किंवा परस्त्रीके कोई संबंधी यदि हमको देखेंगे तो वे हमको बांचेंगे. मारेंगे ऐसे विचारसे उसके साथ उसको भाषण करने के लिये भी निर्व्याकुलता नहीं रहती हैं तो उसके साथ रविमुखकी प्राप्ति कैसी होगी? शतिसुख की प्राप्ति होने पर भी वह सुखी नहीं होता है. प्रकाश में व्याकुलतारहित मृदुशय्यापर परस्त्रीके सर्व अवयव देखनेसे उसके साथ क्रीडा करनेसे सुख होगा अन्यथा नहीं. अत
आखाम
६
१०१८