________________
मुकाराधना
भावाम:
कामी पुरुष स्वयंही इतने दोपसे पीडित होता है ऐसा नहीं परंतु दुसरोंफोभी उपद्रव करता है
अर्थ-मैथुन सेवन करनेसे यह अनेकजीवोंका पध करता है. जैसे तिलकी फल्ली में अग्निसे तपी हुई सलाई प्रविष्ट होनेसे सब तिल जलकर खाक होते हैं वैसे मैथुन सेवन करते समय योनीमें उत्पन्न हुए जीवोंका नाश होता है.
२०१६
Siate
CATAMOLAPADAme
कामुम्मत्तो महिलं गम्मागम्मं पुणो अविण्णाय ।। सुलहं दुलहं इच्छियमणिच्छियं चावि पत्थेदि ॥ ९२३ ।। इजहारीमनिल्या स्त्री दुर्यलां दुर्लभां कुधीः ॥
अज्ञात्वा याचत कामी सर्वाचारयहिर्मयः ।। ०.३९ ॥ विजयोदया-कामुम्मत्ता कामाम्मनो । लिगाः शरीरमात्मनश्च गम्यं भोग्य उतस्थिवगम्यमभोग्यमिति अविसाय इद मन्थमशुचि इति ब्रवीति । सुलभा दुर्लभा श्रात्मन्यमिन्दापयती निरभिलायां च प्रार्थयते ॥
मूलारा-गम्मागर्म खिचा:शरीरमात्मनश्न गम्यं भोग्य तस्विदगम्य अभोग्यं इत्यविज्ञाय यथास्वमनिरूप्य, मलभां दुर्लभामात्मनीच्छावतीमनिच्छावती वा कामोन्मत्तः खियं प्रार्थयते इति टीकाकारः । अन्ये तु सम्मागम्ममित्यपि महिलाविशेषणमाहुः । तथा च तद्ग्रन्थ:--
___ कामोन्मत्तो गम्यामगम्यरूपां च दुर्लभां सुलभा ।।
अज्ञात्वा प्रार्थयते भोक्तुं सेच्छामथानिच्छाम् ॥ अर्थ-कामविकारसे उन्मत्त हुआ मनुष्य खीका शरीर और अपना शरीर भोग्य है या अभाग्य है इसका कुछभी विचार नहीं करता है. यह शरीर पवित्र है या अपवित्र है इसका भी वह विचार नहीं करता है. यह खी दुर्लभ हैं या सुलभ है, यह स्त्री मेरी अभिलापा करती है या नहीं इसका बिना विचार करके ही उसकी वह प्रार्थना करने लगता है
SATTA
१०१६
दृण परकलत्तं किहिदा पत्थेइ णिग्विणो जीवो । ण य तत्थ किं पि सुक्खं पावदि पावं च अज्जेदि ॥ ९२४ ॥