SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1032
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाराधना आयासः अर्थ—खीके स्नेहपाशसे जखडा हुआ वह कामी मनुष्य नीच मनुष्यकी अथवा राजाकी सेवा करता है. धान्यके बीच में उत्पन्न हुआ तृण निकालता है. गाय, भैस, बकरा, हाथी, घोडा वगैरह प्राणिओंका रक्षण करता है. व्यापार करता है, हस्तकौशल्यके कार्य करता हैं. अर्थात् नानाप्रकारके काठके चित्रादिक बनाता है. - - बेढेइ विसबहेदु कलस्त पासेहिं दयिमोपहिं । कोसेण कोम्मियारुव दुम्मदी णिच्च अप्पाणं ॥ ५१९ ॥ दमांचः कागिनीपारी कामी वेष्टयते धीः ।। लालापारिवात्मानं कांगकारामः स्वयम् ॥ २६॥ विजयोदया-वढे विसयाटुं ययति विषयहेनुनिमित्तं । आत्मानं कलत्रपामांचयिनुभशक्यः कोशेन कोशकारकीट च दुर्मतिः॥ मूलाग–बेनि धेभ्यति मध्नाति । दुरिमोहिं मोचयितुमहावयः । कोसेण सालाततुजालेन । अर्थ-विषयसुख भोगनेकी इच्छासे जिसका छुटना अशक्य है ऐसे स्त्रीके स्नेहपाशसे कामी मनुष्य अपनेको चेष्टित करता है, जैस रेशमको उत्पन्न करने वाला कीडा अपने मुख से निकले हुए तंतुओंसे अपनको वेष्टित करता है. | - ATTA सगो दोसो मोहो कसायपेमुण्ण संकिलेसो य ।। ईसा हिंसा मोसा सूया तेणिक कलहो य ॥ ९२० ॥ रागो द्वेषो मवोऽस्या पैशून्यं कलहो रतिः ॥ बचना पराभूतिर्दोषाः सन्ति स्मरातुरे ॥ ५३७ ।। विजयोदया-रागो दोसो रागो द्वेषः, अशानं, कवायाः, परदोषसंस्तवनं, संक्लेशा, या, हिंसा, मृग, परगुणासंहनं, स्तैन्यं कलहश्च ॥ मूलारा-मोहो अज्ञान । पेसुण्णं परवोषसूचनं । मोसं असत्यं । असूया परगुणासहनं । तेणिक चौर्य ।।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy