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भावासा
मूलाराधना
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अर्थ-वह कामी मनुष्य नेत्रयुक्त होकर भी अंधेके समान होता है. अपने पासकी भी वस्तुको वह देखता नहीं. सुनकर भी बहिरेके समान अनसुनी कर देता है. जैसे वनका उन्मच हाथी दुष्ट हाथिनीके वश होकर मूह बन कर कुछ सुनता नहीं कुछ देखता नही चैसी ही कामी पुरुषको स्थिति होती है, वे हितकी बातें सुनना नहीं चाहते हैं. और हितकर जिनमृर्ति, मुनि वगरोंको दर्शन करना नहीं चाहते है.
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सलिलणिबुढोब्ब णरो बुझंतो विगयचेयणो होदि । दक्खी बि होइ मंदो, बिसयपिसाओवहदचित्तो ।। ५१४ ॥ सलिलेनेव कामन सद्या जाव्यविधायिना ॥
दलो पि जायते मंदो नीयमानः समततः ॥१२७ ।। विजयोदया- सलिलो बुग्यतो पानीब्य सलिलनिमग्नः प्रचाहणोहामानों नरो यथा । विगयनयणो विपत. नेतन्यो भवति । नवखा शिक्षा क्षोदि सचार्य प्राणोऽपि जो भनाति । यिसयपिसामोन्याश्चिती गिगापिकालोपनधिसः विनया समाजमोत्रिभानुरक्षाम्पिशाबा गतिविषयाः पिशाचा इत्युक्ताः ।।
मसार:-सनी पराग मानः । कामकारकीरः । विनयविनामोबदवित्ती पिय। सपा विभाग इन चनाविनपतुत्वात पदनामाः ।
अर्थ-जिसे पानीको प्रवाह ड्या हुआ और बहता जा रहा है ऐसा मनुप्य बतनारहित अर्थात मदिन होता है. बस पांचों इन्द्रियों के विषयरूपी पिशाचस वन हुआ मनुष्य यदि कार्य कुशल हो तो भी यह मंद बुद्धि होता है, अर्थात् रूपादि पदाथाई । उसकी बुद्धि दांडती है अतः इतर कार्यों में वह मंदसा होता है.
बारसवासाणि वि संबसित्तु कामादुरो ण णाप्तीय ॥ पादंगुइमसंतं गणियाए गोरसंदीवो ॥ ९१५॥ पर्पद्वादशकं वेश्यां निषेव्यापि स्मरातुरः॥ नाज्ञासीहोरसंदविःपदांगुष्ठमशोभनम् ॥ ९२८॥
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