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________________ मूलाराधना आश्वासः मानी च करोति सदा चटुकर्मा लचितोऽप्यसहशस्य ।। मातापिनरी दालम्य कथयति लोकम्य कानांधः ॥ इमां गाथां टीकाकारो नेच्छनि ।। अथ-मानी मनुष्य भी हीन जानीय लोगोंकीभी विषयलंपट होकर वशामत करता है. उनक पर दामना शरीर मदन करना वगैरह कार्य करना है. और निलंज्ज होकर मैं दास बनकर तरी सवा करुंगा एमा कहता है. मेरी माता और पितामी तुमारे दास चनेंगे एसा कहता है. बयणपडिवत्तिकुसलत्तणे पिणासइ पारस्स कामिस्स ॥ सत्थप्पहब्ब तिक्खा वि मदी मंदा तहा हबदि ॥ ९१२ ॥ विजयोदयान्वयणपडियत्तकुसलत्तणं पि चने प्रतिपत्तौ च कुशलतापि बिनश्यति कामिनो नरस्य । शास्त्रमहता शास्खे घटिता अतितीपणापि मतिः कुंठिता भवति ।। अर्थ-कामी मनुष्यका बचन-चातुर्य और उसकी बुद्धीकी चतुरता नष्ट होती है. शास्त्रों का निरूपण करने बाली अतिशय चातुर्ययुक्त भी उसकी बुद्धि मंद हो जाती है. होदि सचक्खू वि अचरखुव बधिरो वा वि होइ सुणमाणो । दुकरेगुपसत्तो वणहत्थी चेव संमूटो ॥ ९१३ ॥ न पश्यति सनेनापि सश्रोत्रोऽपि शृणोति न । कामातः प्रमवाकांक्षी देनीव हसचेतनः ।। ५२६ ॥ विजयोदया-होदि समयसूचि अचक्लव चक्षुष्मानपि अचक्षुरिध भवति । परं समीपस्थमपि यतो न I पश्यति । यहिरो वा वि दोदि बधिर इच श्यति । सुणमायो शायनापि अव्यक्त.श्रवणात् । दुकगणुपसत्ता तुष्करिणीप्रसक्तः । यावत्थी व वनहस्तीव । संमूदः । मूलारा-अचक्खुब अंध इब समीपस्थमपि यतो न पश्यति । सुणमाणो ण्यन्नपि । बधिर इच भवत्यव्यक्त श्रवणान् । वनइत्थी रेव बनगज इव ।।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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