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मूलाराधना
आश्वासः
கோகாகாகாகாக்கலாகாக்க காககககககபாபாகாதாதாகாகாகாகாகாவாகாது
अर्थ-विषयरूपी आहारमें लंपट होकर कामी पुरुष रत्नत्रयको तिनकेके समान त्याग देता है तप छोडता है. उसके लिए अकार्य कुछ भी नहीं है.
अरहतलिद्ध आयरिय उवज्झाय सधवग्गाणं ।। कुणदि अवण्णं णिच्च कामुम्मन्तो विगयवेसो ॥ ९०६ ॥ गृहात्यायमा मेसिनः ।।
अकृत्यं कुर्बतस्तस्य मर्यादा कामिनः कुतः ॥ ९२० ।। विजयोडवा-अरहतसिद्धआयरिय अर्हता. सिद्धानां, आचार्याणां, उपाध्यायाना, सर्वेषां गतीनां पाथर्णवाद। करोति नित्य विकृतवेषः ॥
मूलारा--अब अकीसि । विपदबेसो विकृतवेषः । विनष्टयनिरूप इत्यर्थः॥
अर्थ-कामी पुरुष अरइंत, सिद्ध आचार्य, उपाध्याय और सवें मुनिओंकी सदा निंदा करता है. अर्यात उनमें दोष न होनेपर भी दोषारोपण करता है. और यदि स्वयं वह पति होगा तो यतिफ्ना छोडकर अन्य वेष धारण कर यथेशचरण करता है.
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अयसमणत्थं दुःखं इहलोए दुग्गदा य परलोए ॥ संसारं पि अणतं ण मुणदि विसयामिसे गिडी ।। ९.७ ॥ स दुःस्वमयशोऽनर्थ कल्मषं द्रविणश्यम् ।।
संसारसागर नंते भ्रमणं च न मन्यते ॥ ९२१ ॥ विजयोदया-अयसमणधं अयशःअमर्थ । दुःखं चेहपरलोक दुष्टो गति, संसारमप्यनंनं भाचिनं न यत्ति घिषयामिषे मृवः॥
मूलारा-पाष्टम् ॥ अर्थ-विषयरूपी आहारमें आसक्त होकर वह कामी अयश, “अनर्थ, दुःख, इह परलोकमें अशुभगति.
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