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________________ मूलाराधना आश्वासा बंधुं जाति कुलं धर्म संवासं मदनातुरः ।। अवमन्य नरः सर्व कुरुते कर्म निंदितम् ।। ५१३ ।। विजयोदया-जादिकुलं मातृपितृवंश । संघास सहयसनं । धर्म बांधवानपि अवगम्य पुरुयोऽकार्य करोति मथुनसंज्ञा मूढः मूलारा-संवास सहयसनो जनान मित्रादीन ॥ अर्थ-कामेछासे जब मनुष्य व्याकुल होता है तब आपकी जाति और कुलका विचार नहीं करता है. अपने साथीदारोंका अपने धर्मबंधओंको भी बचन मानता नहीं है अर्थात वह निलज्ज होता है. और अकार्य कर बैठता है. कामपियरगहिदो हिदमहिदं बा | अप्पणो मुणदि ।। होइ पिसायरगहिदो वसदा पुरिसो अणप्पवसो ।। ९०० ॥ पिशायमेव कामेन व्याकलीकृतमानसः ॥ हिताहितं न जानाति निर्षिषेकीकृतोऽधमः ॥ ९१४ ॥ विजयोवया-कामपिसायग्गहिदी कामपिशाचगृडीत- हितमहितं वा न सि, पिशावेन गृहीतः पुरुष इब सवा अनावशो भवति ।। मूलारा-स्पटम् ॥ अर्थ-पिशाचग्रस्त मनुष्य जैसा आपेमें नहीं रहता है वैसा कामपिशाचके वश हुआ मनुष्य हिताहित जानवा नहीं. वह बुद्धिभ्रष्ट होता है. णीचो व णरो बहुगं पि कदं कुलपुत्तओ वि ण गणेदि । कामुम्मन्तो लज्जालुओ वि तह होदि णिल्लज्जो ॥ ९०१ ॥ नोपकार कुलीनोऽपि कृतघ्न इव मन्यते ॥ लजालुरपि निलेजो जायते मदनातुरः ॥ ९१५ ॥ २००४
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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