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मूलाराधना
मायामा
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पवमे ण किंचि जगदि दसमे पाणेहिं मुच्चदि सदधो ॥ संकप्पवसेण पुणो वेगा तिव्वा व मंवा वा ॥ ८९५ ।। न वोत्त नबमे किंचिदशमे मुच्यतेऽसुभिः।।
संकल्पतस्ततो वेगास्तीबा मंदा भवंति वा ।।९०९॥ विजयोदया-नवमे नात्मानं वेत्ति । दशमे धेगे प्राणचिमुच्यते । मवान्धस्य संकल्पयशेन पुनस्तीमा मैदा वा भवन्ति गाः।
मूलारा-मबंधो कामांधः ॥
अर्थ नववे वेगमें वह अपने को भी जानता नहीं है और दशमें वेगमें वह प्राण छोड देता है. ये दशबंग संकल्पकी जैसी तीव्रता अथवा मंदता होगी वैसे तीव्र या मंद होते हैं.
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अट्टामूले जोण्हे सूरो विमले णहम्मि मज्झण्हे 11 ण डहदि तह जह पुरिसं डहदि विकतउ कामी ॥ ८९६ ॥ ज्येष्ठ सूरः सिते पक्षे मध्याह विमलेम्बरे ॥
नरं दहति मो तद्वद्र्धमानो यथा स्मरः॥ ५१०।। विजयोदया-जेवामूले ज्येष्टमासे शुक्लपक्ष विमले नभसि मध्याके रविः स न दद्दति तथा यथा पुरुष यहति प्रचईमानः कामः ||
मूलारा-जेठे ज्येष्ठमासे | मूले मुलनक्षत्रे । जोण्हे शुक्लपक्षे । णहम्मि आकाशे ॥
अर्थ-ज्येष्ठमासके शुक्ल पक्षमें निरभ्र आकाशमें मध्याससमय में सूर्य भी उतना पुरुषको संतप्त नहीं करता है जितना यह काम संतप्त करता है. अर्थात् ज्येष्ठमासके सूर्यतापसे भी इस कामका ताप प्रचंड और असह्य है.
सुरगी डहदि दिवा रतिं च दिया य डहइ कामगी॥ सूरस्म अस्थि उच्छागारो कामग्गिणो णत्थि ॥ ८९७ ॥