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________________ आश्वास मूलाराधना १००१ ताम्वशापि वेगान्कमेण वर्शयति-. पढमे सोयदि वेगे,दई त इच्छदे विदियवेगे ॥ .. हिस्ससदि तदियवेगे. आरोहदि जरो चउत्थम्मि || ८९३ ॥ शोचति प्रथमे धेगे द्वितीये ता दिक्षते ।। तृतीये मिगसिचळगायत ।। || विजयोदया-पढमे सोयदि येने प्रथमे वेगे शोचति । द्वितीये धेगे स तं द्रष्टमिच्छति । निःश्वसिति च तृतीये यंगे । आरोहति ज्वरश्चतुर्थे वेगे ।। के ते दावेगा इत्यत्र गाथात्रयमाड्-- मूलारा-पष्टम् । उन दश वेगोंका वर्णन कमसे आचार्य करते हैं अर्थ—कामयेगकी पहिली अवस्थामें वह कामी पुरुष शोकयुक्त होता है. दुसरी अवस्थाम इष्ट स्त्रको दग्बनेकी इच्छा करता है. तीसरे वेगमें दीर्घ श्रासांच्यास करना है. चौथे वेगमें उसको ज्वर चढता है. PAAAAAPurseAns TOSRASPARAMATTATRAPATAR-R RB डझदि पंचमकेंगे अंगं छठे ण रोचदे भत्तं ।। मुचिछज्जदि सत्तमए उम्मत्तो होइ अहमए ॥ ८९४ ॥ दाते पंचमे गात्रं भकं पठेन रोचते ॥ प्रयाति सप्तमे मूर्छामुन्मत्तो जायतेऽष्टमे ।। ९०८ ॥ विजयोदया-उमवि पंचमवेगे पंचमवेगे वद्यते । भक्तारुचिः पठधेगे | सप्तमगे मूहर्षति । उन्मसो भवत्यष्टमे ॥ मूलारा-पष्टम् । .... अर्थ-पांचवे वेगमें उसके अंगमें दाह उत्पन्न होता है. छठे वेगमें उसको अनादिकोंमें अरुचि उत्पम | होती है. सातवे वेगमें यह मूञ्छित होता है. आठवे वेगमें उसको उन्मतावस्था प्राप्त होती है. १२६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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