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मृलाराधना
अर्थ-यह कामरूपी सर्प लज्जारूप कांचलीका त्याग करता है. उन्मत्ततारूप दादसे यह महाभयंकर || दीखता है. ऐसा यह सर्प जप दंश करता है तब अनेक दुःखरूपी विष मनुष्य व्याप्त होकर नष्ट होते हैं.
आचाम:
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Dotos
आसरविण अवरुद्धस्स वि वेसा इवति स ॥ सक्षेति पुगोभेमा काममुबंगामस्वस्त ।। ८९९ ॥ आशीविषेण दष्टस्य सगाः शरीरिणः ॥ ।
वष्टस्य स्मरसपण जायतेश सिंहलः ॥ ९०६ ॥ विजयोदया-आमीदिलमा: आशीविदेश मनाया इपस्यापि मष वेगा भवन्ति । कामभुजंगेन दष्टस्य दशवगा भवन्ति । मूलारा--आमीविसेण सर्माप्रपया। अवरकरूप वरूप । बेगा विषोका।। समन ॥ बसथा
"पूढे एकदा केले जुष्टं इससीसमास्यसक् ॥
वापता नेववकादौ सर्पन्तीव च कीटकाः ॥ द्वितीये ग्रन्थयो बेगे तृतीये मुर्द्धगौरव ॥ हमोधो देशविष्लेदश्चतुर्थे छीवन कमिः ।। संधिविश्लेषण तंद्रा पंचमे पर्षभेदनम् काही हिधमा च पाहेपीला गावगौरवम् ॥ अच्छोडविषाकोडतीसार: प्राध्य सुकं तु सप्तमे ।।
धाकलीमंघः सविता नियनम् ॥ अर्थ-जिसको सर्प दंश करता है उस ममुष्यको मार विषवेग उत्पन्न होते हैं. अर्थात सर्पके विषसे उस मनुष्यको सात अवस्थायें क्रमसे प्राप्त होती हैं. परंतु कामरूपी सर्पके दंशसे मनुष्यको दस अवस्थाओंको भोगना पडता है.