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मूलाराधना
वह पर्वतपरसे गिरकर मरने की इच्छा करता है. समुद्र में प्रवेश कर प्राण देना चाहता है. झारकी शाखामें फांसी लगाकर मरना चाहता है और अग्निप्रवेशादिक से प्राणत्याग करनेकी इच्छा करता है.
आश्विासः
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संकप्पंडयजादेण रागदोसचलजमलजीहेण । ' विसयबिलवासिणा रदिमुहेण चिंतादिरासेण ।। ८९. ।। संकल्पांहकजालेन विषयच्छिद्रधासिना ॥
रागद्वषद्विजिलेन वृद्धचिलामहाक्रुधा ।। ५०१ ।। विजयोदया-संकप्डयजावेण संकल्पांजप्रसूतेन । रागवेपन्नलयमलजिह्वेन । विषयचिलवासिना रतिमुखेन चितातिरोषेण ॥
गलारा-संकाप इष्टांगनादर्शनाचा प्रत्युत्कंठागर्भाव्यवसायः । जमलं यं । वितादिरोसेण इष्टांगनागुणसमर्थन तहोपपरिहरणार्थविचारात्मचिंतनातिकोधन ।।
अर्थ-यह कामरूपी सर्व संकल्प रूपी अंडसे उत्पन्न होता राग और द्वेष ऐमी दो जिहा उसको है. यह विपयरूपी बिलमें रहता है. विषयासक्ति ही इसका मुख है, और यह चिंतारूप रोपसे युक्त है.
कामभुजगेण दट्टा लज्जाणिम्मोगदप्पदाढेण ॥ णासंति णरा अवसा अणेयदुक्खावहबिसेण ।। ८५१॥ दृष्टकामभुजगेन लज्जानिर्मोकमोचिना ।।
वर्पदंष्ट्राकरालेन रतिवक्त्रेण नश्यति ॥ ९०५ ॥ विजयोदया-कामभुजगेण कामसर्पण । लज्जास्वनिमोचनकारिणा, दर्पदंरण दश अनेकदुःस्वावदधिषण नरा नश्यन्ति ।
मूलारा-सज्जाणिम्भोग लजैव निर्मोकः कंचुको यस्य मोच्यत्वान् । लजानिर्मोकमोचिनेत्यर्थः । अणेगदुक्सपगषिसेण अनेकदुःस्वात्मकविषेण ॥