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भाचासः
मूलारावना
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मूलारा-उठियो इष्टकामिनी प्रत्युत्युकः ।
अर्थ-जो मनुष्य कामपीडित हुआ है उसको एक क्षण भी वषके समान भासने लगता है. उसके संपूर्ण अंग का होते है. और वह किसीकी मार्गप्रतीक्षा कर रहा है ऐसा दिखता है. अथात् उत्कंठितसा दीखता है. अर्थात प्रियसीकी उत्कंठासे वह व्याकुल होता है.
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पाणिदलधारदगंडो बहुसो चिंतेदि किं पि वीणमुहो । सीदे वि णिवाइजइ वेबदि य अकारणे अंग ॥ ८८७ ॥ हस्तन्यस्तकपोलोऽसौ दीनो ध्यायति संततम् ।।
प्रस्थिपति तुषारेऽपि कंपते कारण विना ।। ९०० ।। विजयोदया-पाणिवलयरिदगडो पाणितलधृतर्ग, बहुसो चिंतेवि बहुशधितां करोति। किमपि दीनमुखः ॥ शीतेऽपि खिचते । बेपत्ते च अंगं कारणमम्यवंतरेण ।
मूलारा-पाणिदलधरिदगंडो इस्तवलन्यस्तफपोलः । णिवाइजदि प्रस्विति ।।
अर्थ-कामरूपी रोगसे पीडित हुआ मनुष्य अपना गाल हाथके ऊपर रखकर दीनमुखसे अतिशय चिंतायुक्त होता है. इस चिंतासे ठंडीके दिन में भी उसके सर्व अवयव खदासे गीले होते है. और उसके अवयव बिना कारणके थर थर कांपने लगते हैं. भीति अथवा ठंडी ग्रह अवयव कंपके लिए कारण हैं. परंतु इनके चिना भी इसके अवयच कंपने लगते हैं.
कामुम्मत्तो संतो अंतो डन्झदि य कामचिंताए । पीदो व कलकलो सो रदग्गिजाले जलतम्मि ॥ ८८८ ॥ अरत्यग्निशिखाजालैज्वलनिरनिवारितः॥
सोन्तर्विदस्यते पीतैस्तौस्तानद्रवैरिव ।। ९०१ ॥ विजयोदया-कामुम्मत्तो कामोन्मत्तःकामर्धितया चिरं दह्यते। पीततानव इव। अरस्पन्दीलासु ज्वलतीषु।
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