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________________ मार सेना रखीका ही तद करता है. और कल्याणकारक धर्मको दिनमें और रातमें माता आतीनही भूल जाता है. স্মৃমি: मृलाराधना 4 सयणे अणे य सयणासणे य गामे घरे व रपणे वा ।। कामपिसायग्गहिदो ण रमदि य तह भोयणादीसु ॥ ८८५॥ आसने शयने स्थाने नगरे भवने वने ॥ स्वजनन्यजने कामी रमते भास्तचेतनः ।। ८९७॥ विजयोदया-सयणे जणे य रखजने, परसने, शयों, भासने, ग्रामे, गृहे, अरण्ये, भोजनाधिक्रियासु च न रमते कामपिशाच गृहीतः ॥ मूलारा०- सगणे स्वजने । जणे परजने ॥ अर्थ-कामातुर मनुष्य, अपने संबंधी जनोंमें, अथवा परकीय लोगों में, तिष्ठता हुआ हमेशा खिन्नही रहता है. गाममें, घरमें, अरण्य में, और भोजनादि क्रियाओंमें भी उसका मन खुश नहीं रहता है. उसको हमेशा कामरूपी पिंद्याच सताता रहता है. मा कामादुरस्म गच्छदि खणो बि संवच्छरो ब पुरिसरस ॥ सीदति य अंगाई होदि अ उत्कंठिओ पुरिसो ॥ ८८६ ।। न राम्रो न दिवा शेते न भुक्तं न सुम्बायते ।। दष्टः कामभुजंगेन न जानाति हिताहित ।। ८९८ ।। कामाकलितचित्तस्य मष्टों वत्सरायते ॥ सर्वदोत्कंठमानस्य भवनं काननायते ॥ ८९९ ॥ विजयोदया-कामातुरस्स गछवि खणो वि कामव्याधितस्य गम्छति क्षपोऽपि । सश्सर इष अंगानि च सीदति । भवस्युत्कंठितश्च पुरुषः ।। ९९६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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