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________________ मूलाराधना ९.८८ अर्थ - मनुष्यमवमें भी वह चोर जन्म लेनेपर उसका धन पूर्व पापकर्मके उदयसे हरा जाता है. अथवा वह दरिद्री हो जाता है. कितना भी प्रयत्न करनेसे उसके पास धनसंचित होताही नहीं अथवा धन संचित होनेपरभी वह स्वयं उससे दूर चला जाता है. अर्थात् अन्तराय कर्मके उपार्जनसे वह घनका उपभोग ले नहीं सकता. परदव्वहरणबुद्धी सिरिभूदी णयरमज्झयारम्मि | होवूण हृदो पदो पत्तो सो दीहसंसारं ॥ ८७ ॥ श्रीभूतिर्महती प्राप्य पुरमध्ये विडम्बनाम् || परद्रव्रतो दीनः प्रदीर्घ विजयोदया - पदव्वहरणबुद्धी परद्रव्यहरबुद्धिः सिग्भूिदी श्रीभूतिर्नगरमध्ये ताडितः महतश्च भूत्वा . दीर्घसंसारं प्रातः ॥ अर्थ - परद्रव्यहरण में जिसकी बुद्धि प्रवीण थी ऐसा श्रीभूति नामका ब्राह्मण जो कि राजाका पुरोहित था वह नगर में पीटा गया और मारा गया. इस चोरी के दोष से उसने दर्घि कालतक संसार में भ्रमण किया. दत्तादानदोषानुपद इस योग्यं गृहाणेति व्याचष्टे एवं सवे दोसा होति परदव्वहरणविरदरस || तविवरीदा य गुणा होंति सदा दत्तभोइस्स || ८७५ ॥ देविंदरायगहवइदेवदसाहम्मि उग्गहुं तम्हा || उग्गहविहिणादिष्णं गेहसु सामण्णासाह्णये ॥ ८७६ ॥ एते दोषा न जायते परद्रव्यविवर्जने ॥ तद्विपक्षा गुणाः सन्ति सुंदरा वत्तभोजिनः ॥ ८८६ ॥ इंद्र राजगृहस्वामिदेवता समधर्मिभिः ॥ बितीर्ण विधिना प्राचं रत्नन्त्रितयवर्धकम् ॥ ८८७ ॥ आश्वासः ६ ९८८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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