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मूलाराषता
अर्थ-चोरके मनमें दिनरात भय रहता है. उसको भयके मारे निद्रा भी आती नहीं. वह हमेशा चारों तरफ भययुक्त हरिणके समान देखता रहता है.
आवार
संदरकंदपि सई सुच्चा परिवेवमाणसव्वंगो ॥ सहसा समुच्छिदभओ उब्बिग्गो धावदि खलंतो ॥ ८६९ ॥ आकर्ण्य मूषिकस्यापि शब्दं शंकितमानसः ।।
धावते सर्चतः सद्यः स्वलन्स्वमरणाकुलः ।। ८८५ ।। विजयोदया-उंदर कदपि सई मूषकचलनकृतमपि शब्दं श्रुत्वा प्रस्फुरत्सर्यगाधः | सहसोत्यभयोद्विग्नो धावति 1 स्खलम्पये परे।
अर्थ-भागते हुए मृषकका अर्थात् चूहेका ध्वनि सुनकर चोर भीतीसे थरथर कांपने लगता है और डरकर दौडने लगता है. दौरते समय गयडीसे गिरजाता है.
धतिं पि संजमंतो घेत्तूण किलिंदमेचमविदिपणं ।। होदि हु तणं व लहुओ अप्पच्चइओ य चोरो ब्व ।। ८७० ॥ अदत्ते तुणमात्रेऽपि गृहीने संयतोऽपि ना॥
अप्रत्ययो यथा स्तनस्तृणतो जायते लघुः ।। ८८१ ।। विजयोदया-धर्ति पि संजमतो नितरामपि संयम कुर्वन् । अदत्तं तृणमात्रमपि गृहीत्या तृप्यवल्लघुर्भवति, अप्रत्ययितश्वीर सच ||
अर्थ-महान् संयम धारण करके भी साधु न दिया हुआ तृणमात्र भी ग्रहण करके चोरके समान अविवासी बन जाता है और तिनके के समान हलका हो जाना है.
परलोगम्मि य चोरो करेदि गिरयम्मि अप्पणो बसदि ।। तिवाओ वेदणाओ अणुभवहिदि तत्थ सुचिरंपि ॥ ८७१ ।।