SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1002
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [मागाधना आश्वासः अर्थ--हिंसादिक अन्य अपराध करने वालोंक पक्षमें लोक रहते हैं. परंतु बंधुभी चोरी करने वालोंके पक्षमे रहना नहीं चाहते हैं. अण्णं अवरज्झतस्त दिति णियये घरम्मि आवास ॥ माया वि य ओगास ॥ देइ चोरिक्सीलस्स ॥ ८६४ ॥ वितति जनाः स्थानं दोषेऽन्यत्र कते सति ॥ स्तेये पुनने मातापि पुरुपातकवायिनि ।। ८७५ ॥ विजयोदया-अण्ण अवरजातस्स अन्य अपराधं कुर्वतः बदति स्वाषासे अवकाशं । माताप्यवकाशं न ददाति धुरायां प्रवृत्तस्य ॥ अर्थ- अन्य अपराध करने वालोंको लोक अपने घरमें आश्रय देते हैं परंतु लोक तो क्या चोरी करनेवाले मनुष्यको उसकी माता भी आश्रय देती नहीं. परवहरणमेदं आसबदारं खु ति पाबस्स ॥ सोगरियवाहपरदारयेहिं चोरो हु पापदरो ॥ ७६५ ॥ द्रव्यापहरणं द्वारं पापस्य परभिष्यते ।। सर्वेभ्यः पापकारिभ्यः पापीयांस्तस्करी मतः ८७६ ।। विजयोदया-गरदथ्वहरणमेद परदव्यापहरणमेतत् पापस्यानवद्वार बुधति । शौकरिकात, म्याधात्, परदाररतिप्रियान्न चौरः पापीयान ॥ अर्थ-परदन्य हरण करना यह पाप आनेका द्वार है. मुअर का घात करनवाला, मृगादिकाको पकरनेवाला और परस्त्री गमन करनेवाला इनसे भी चोर अधिक पापी गिना आना जाता है. सयणं मित्त आसयमल्लीणं पि य महल्लए दोसे ॥ पाडेदि चोरियाए अयसे दुक्खम्मि य महल्ले ॥ ८६६ ।। ९८४
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy