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________________ लाराधना आधा विद्यमाने धने लोका जीवन्ति सहपंधुमिः ॥ तस्मिन्नपहृते तेषां सर्वेषां जीवितं हृतम् ।। ८७२ ॥ विजयोदया-प्रत्य संतरिम सुई अर्थे सति सुखं । जीवदि सकलसपुत्ससंबंधी जीवति सह कलर्भायाभिः, पुर्बधुभिश्च । अर्थ हरता तेषां कलादीनां जीवितमेव कृतं भवति । ... ... अर्थ-चोरके हृदयमें दया, लज्जा, दम, रियास रेगु निकालही करत है. चोरको धनके लिये कुछ भी अकर्तव्य नहीं है. अर्थात् अयंत निंद्य, और क्रूर कार्यभी वह धनके लिये करता है, --- -- -- - चोरस्स पत्थि हियए दया च लम्जा दमो व विस्सासो ।। चोररस अत्थहेर्दु णत्थि य कादव्वयं किं पि ८६२ ।। न विश्वासो दया लज्जा सन्ति चौरस्य मानसे ॥ माकृत्यं धनलुब्धस्य तस्य किंचन विद्यत ।। ८७३ ।। विजयोदया-चोरस्स पत्थि हियप चौरस्त नास्ति हदये । दया, लज्जा, दमो, विश्वासो वा । चौरस्य नास्ति अकर्तव्य किचित् । अार्थिन इति भावार्थः। अर्थ-धनसे इंद्रियसुखकी प्राप्ति होती है. धनसे मनुष्य पत्नी, पुत्र और संबंधी जनोंके साथ जी सकता है. और यदि उसका धन चोरने हरण किया तो उसने उसका और उसके परनी पुत्रादिकोंका जीवित हरण किया ऐसा समझना चाहिये. लोगम्मि अस्थि पक्खो अवरईतस्स अण्णमवराधं ॥ णीयल्लया बि पक्खे ण होति चोरिक सीलस्स || ८६३ ॥ अपराधे कृतेऽप्यन्न पक्षे लोकोऽपि जायते ॥ घंधवोऽपि न चारस्य पक्षे सन्ति कदाचन ॥ ८७१ ।। विजयोदया-लोयम्मि अत्थि पक्खो लोकेऽस्ति पक्षोऽयमपराधं हिंसादिकं कुर्वतो बंधयोऽपि न पक्षतां H प्रतिपद्यते ये चौर्यकारिणः ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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