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मोह की मात्रा
"विफल हो धर्म की विजय हो कर्म का विलय हो जय हो, जय हो जय-जय-जय हो
लो ! समय निकट आ गया है, बालटी वह यान-सम ऊपर उठने को है और मंगल-कामना मुखरित होतीमछली के मुख से : "यही मेरी कामना है
कि आगामी छोरहीन काल में बस इस घट में
काम ना रहे !" इस शुभ यात्रा का एक ही प्रयोजन है, साम्य-समता ही मेरा भोजन हो सदोदिता सदोल्लसा मेरी भावना हो, दानव-तन धर मानव-मन पर हिंसा का प्रभाव ना हो,
दिवि में, भू में भूगर्भो में
मूक माटी ::17