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एक 'भावित हुई शेष प्रभावित हुई एक को दृष्टि मिली दिशा सब पा गईं।
दया की शरण मिली जिवा में किरण खिली
और सब-की-सब उजली ज्योति से प्रकाशित हुईं स्नात स्नपित हुई भीतर से भी, बाहर से भी तत्काल!
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इस अवसर पर पूरा-पूरा परिवार मा उपस्थित होता है मुदित-मुखी वह। तैरती हुई मछलियों से उठती हुई तरल-तरंगें तरंगों से घिरी मछलियाँ ऐसी लगती हैं कि सब के हाथों में एक-एक फूल-माला है
और सत्कार किया जा रहा है महा मछली का, नारे लग रहे हैं'मोक्ष की यात्रा
"सफल हो
76 :: मूक माटी