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एक में जीवन है एक में जीवन का अभिनय। अब तो अस्वों, शस्त्रों और वस्त्रों कृपाणों पर भी 'दया-धर्म का मूल है लिखा मिलता है। किन्तु, कृपाण कृपालु नहीं हैं वे स्वयं कहते हैं हम हैं कृपाण
हम में कृपा न ! कहाँ तक कहें अब ! धर्म का झण्डा भी डण्डा बन जाता हैं शास्त्र शस्त्र बन जाता है अवसर पा कर।
और प्रभु-स्तुति में तत्पर सुरीली बाँसुरी भी बाँस बन पीट सकती है प्रम-पथ पर चलनेवालों को। समय की बलिहारी है।"
सखी की बात सुन कर मछली पुनः कहती है कि "यदि तुझे नहीं आना है, मत आ
परन्तु
उपदेश दे कर व्यर्थ में समय मत खा!"
मूक माटी :: 73