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लो ! हाथों-हाथ संकल्प फलीभूत होता-सा स्वप्न को साकार देखने की आस-भरी पछली की शान्त आँखें ऊपर देखती हैं। उतरता हुआ यान-सा दिखा, लिखा हुआ था उस पर "धम्मो दया-विसुद्धो” तथा "धम्म सरणं गच्छामि" ज्यों-ज्यों कूप में उत्तरती गई बालटी त्यों-त्यों नीचे, नीर की गहराई में झट-पट चले जाते प्राण-रक्षण हेतु मण्डूक आदिक अनगिन जलीय-जन्तु।
किन्तु, हलन-चलन-क्रिया मुक्त हो
अनिमेष - अपलक निहारती हैं उतरती बालटी को रसनाधीना रसलोलुपा सारी मछलियाँ वे, भोजन इससे कुछ तो मिलेगा
इस आशा से ! पर यह क्या! वंचना"! खाली बालटी देख कर
70 :: मूक माटी