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जल को जड़त्व से मुक्त कर । मुक्ता-फल बनाना है, पतन के गर्त से निकाल कर । उत्तुंग-उत्थान पर धरना, धृति-धारिणी धरा का ध्येय है। यही दया-धर्म है
यही जिया कर्म है। पृष्ठ 1921-1522 इस तीसरे खण्ड में कुम्भकार ने माटी की विकास-कथा के माध्यम से पुण्य-कम के सम्पादन से उपजी श्रेवरकर उपलब्धि का नित्रण किया है। मेघ में मेघ-मक्ता का अवतार। मक्ता का वर्षण होता हैं अपक्व कुम्भों पर, कुम्भकार के प्रांगण में। मोतियों की वर्षा का समाचार पहुँचा राजा के पास । मुक्ता की राशि को बोरियों में भरने का संकेत मिल्ला राजा की मण्डली को।नीचे झुकी मण्डनी राशि भरने को ज्यों ही, गगन में गुरु गम्भीर गर्जना-अनर्थ, अनर्थ, अनर्थ ! पाप ''पाप''पाप !
राजा को अनुभूत हुआ कि किमी मन्त्र-शक्ति द्वारा उसे कीतिल किया गया है। अन्त में कुम्भकार ने यह सोच कर कि मुक्ता-राशि पर वास्तव में राजा काही अधिकार है, उसे समर्पित कर दिया।
धरती की कीर्ति देख कर सागर को क्षोभ / सागर के क्षोभ का प्रतिपक्षी बड़वानल · तीन . धन वादनों की बाड़ा... कृष्ण मील कापोत लेश्याओं के प्रतीक / सागर द्वारा राह का आह्वान । सूबंग्ग्रहण : इन्द्र द्वारा मेघों पर बज्रप्रहार, ओलों की वर्षा, प्रलयंकर दृश्य ।
ऊपर अणु की शक्ति काम कर रही है तो इधर" नीचे । मनु की शक्ति विद्यमान ! एक मारक है, एक तारक एक विज्ञान है । जिसकी आजीविका तर्कणा है, एक आस्था है। जिसे आजीविका की चिन्ता नहीं (पृष्ठ 219)
जल और ज्वलनशील अनल में अन्तर शेष रहता ही नहीं । साधक की अन्तर-दृष्टि में । निरन्तर साधना की यात्रा / भेद से अभेद की ओर
वेद से अवेद की ओर / बढ़ती है, बढ़ना ही चाहिए (पृष्ठ 267 खण्ड चार-अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख
कुम्भकार ने घट को रूपाकार दे दिया है, अन्न उसे अवा में तपाने की तैयारी है। पूरी प्रक्रिया काव्य-बद्ध है। अनेक प्रकार की प्रक्रियाओं के बीच बबूल की
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