________________
प्रतिपादन है। शृंगार रस की नितान्त मौलिक व्याख्या है। ऋतुओं के वर्णन में कविता का चमत्कार मोहक हैं | तत्त्व-दर्शन तो, जैसा मैं कह चुका हूँ, अनायास ही पद-पट पर उभर आता हैं।
‘उत्पाद-व्यय-धौम्य-यक्तं सत्' सूत्र का व्यावहारिक भाषा में चमत्कारी अनुवाद किया हैं :
आना, जाना, लगा हुआ है आना यानी जनन-उत्पाद है, जाना यानी मरण-व्यय है लगा हुआ यानी स्थिर-धौव्य है
और है यानी चिर-सत्
यही सत्य है, यही तथ्य" (पृष्ट IRR) भाव यह है कि उच्चारण मात्र 'शब्द' है, शब्द का समार्ण अर्थ समझना 'बोध' है, और इस बोध को अनुभूति में, आचरण में उतारना 'शोध' है।
खण्ड तीन-पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन
मन, वचन, काय की निर्मलता से, शुभ कार्यों के सम्पादन से, लोक-कल्याण की कामना . पुण्य जापार्जित होता है। क्रोध, मान, माया, लोभ से पाप फलित होता
यह बात निराली है, कि मौलिक मुक्ताओं का निधान सागर भी है कारण कि मुक्ता का उपादान जल है, यानी-जल ही मुक्ता का रूप धारण करता है, तथापि इस विषय पर विचार करने से / विदित होता है कि इस कार्य में धरती का ही प्रमुख हाथ है। जल को मुक्ता के रूप में दालने में शुक्तिका-सीप कारण है। और / सीप स्वयं धरती का अंश है। स्वयं धरती ने सीप को प्रशिक्षित कर सागर में प्रेषित किया है।
ग्यारह