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एक किरण मिल जाती उसे
'सार-हीन विकल्पों से जीने की आशा को खाने के लिए विष हो मिल जाता है
और,
चिर-काल से सोती कार्य करने की सार्थक क्षमता धैर्य-धृति वह खोलती है अपनी आँख दृढ़-संकल्प की गोद में ही।" बस कृत-संकल्पिता हुई मछली ऊपर भूपर आने को।
नश्वर प्राणों की आस भाग चली ईश्वर प्राणों की प्यास जाग चली मछली के घर में!
फिर फिर क्या? जड़-भूत जल का प्यार निराधार कब तक टिकेगा? यह भी पल में हुआ पलायित
छूमन्तर कहीं। अभय का निलय मिला सभय का विलय हुआ मछली के जीवन में
H:: मूक माटी