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आगे-आगे भी चलता रहे
बस! और कोई वांछा नहीं। और तुमने कठिन-कठोर गाँठ पाल रक्खी थी उसे खोले बिना भरी बालटी को कूप से ऊपर निकालते समय जब वह गाँठ गिर्रा पर आ गिरेगी, नियम रूप से बालटी का सन्तुलन बिगड़ जाएगा तब।
रस्सी गिरी में फँसेगी। परिणाम-स्वरूप बालटी का बहुत कुछ जल उछल कर पुनः कूप में गिरेगा उस जल में रहते जलचर जीव लगी चोट के कारण अकाल में ही मरेंगे, इस दोष के स्वामी मेरे स्वामी कैसे बन सकते हैं? इसीलिए गाँठ का खोलना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य रहा। समझी बात!
पृक माटी :: 65