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मेरे स्वामी संयमी हैं हिंसा से भयभीत,
और
अहिंसा ही जीवन है उनका। उनका कहना है
भार्ग संयम केलिना आदनहीं । जाज
यानी! वही आदमी है जो यथा-योग्य सही आदमी है
हमारी उपास्य-देवता अहिंसा है और जहाँ गाँठ-ग्रन्थि है वहाँ निश्चित ही हिंसा छलती है। अर्थ यह हुआ कि ग्रन्थि हिंसा की सम्पादिका है
और निन्थ-दशा में ही अहिंसा पलती है, पल-पल पनपती, "बल पाती है।
हम निन्ध-पन्थ के पथिक हैं इसी पन्थ की हमारे यहाँ चर्चा - अर्चा - प्रशंसा सदा चलती रहती है। यह जीवन इसी भाँति
64 :: मूक माटी