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और इस निन्ध कार्य के प्रति छी'छी.
धिक्कारती-सी रसना गाँठ के सन्धि-स्थान पर लार छोड़ती है। परिणाम यह हुआ कि रस्सी हिल उठी अपने भयावह भविष्य से! और, कुछ ही पलों में गाँठ भीगी, नरमाई आई उसमें ढीली पड़ी वह। फिर क्या पूछो! दाँतों में गरमाई आई सफलता को देख कर! उपरित और निचले सामने के सभी दाँत तुरन्त गाँट को खोलते हैं।
अब रस्सी पूछती है रसना को जिज्ञासा का भाव ले
"जापके स्वामी को क्या बाधा थी इस गाँठ से?" सो रसना रहस्य खोलती है: "सुन री रस्सी!
पूक माटी :: 68