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उनमें से मांस बाहर झाँकने को है ।
हठ छोड़ कर गाँठ को ढीली छोड़ !
घटी इस घटना को देख कर रसना भी
उत्तेजित हो बोल उठी
कि
62 : मूकमाटी
"खोरी रस्पी
मेरी और तेरी नामराशि एक ही हैं
परन्तु
आज तू रस-सी नहीं है,
निरी नीरस लग रही है सीधी सादी
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श्री अब तक दादी, दीदी-सी
मानी जाती थी
उदारा अनूदरा-सी, अब सरला नहीं रही तू! घनी गठीली बनी है
और
अन्यथा
पश्चाताप हाथ लगेगा तुझे चन्द पलों में जब
घनी हठीली बनी है
I
अविभाज्य जीवन तेरा विभाजित होगा दो भागों में..!"
Somatice