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और, दाहिनी ओर का
निचला शूल
गाँठ का निरीक्षण करता है चारों ओर से सर्वांगीण
और अविलम्ब
सन्धि-स्थान की गवेषणा तुम नहीं कर सकते !"
उस सन्धि की गहराई में स्वयं को अवगाहित करता है, दाहिनी ओर के
उपरि शूल का सहयोग ले । दोनों शूलों के चूल
परस्पर मिल जाते हैं
और
उन शुलों के सबल मूल परस्पर बल पाते हैं
लो ! मार्दव मसूड़े तो इस संघर्ष में छिल-खुल गए हैं
फिर भी इस पर भी !!
गाँठ का खुलना तो दूर, वह हिलती तक नहीं
प्रत्युत,
शूलों के मूल ही लगभग हिलने को हैं
और
शूलों की चूलिकाएँ टूटने भंग होने को हैं ।
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भूक माटी 61