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रस्सी के बीचोंबीच एक गाँठ आ पड़ी कसी गांठ है वह |
खोलना अनिवार्य हैं उसे
और
आयाम प्रारम्भ हुआ शिल्पी का । हाथ के दोनों अंगुष्ठों में
दोनों तर्जनियों में
पूरी शक्ति ला कर
पर,
गाँठ खुल नहीं रही है। अंगुष्ठों का बल
घट गया हैं,
दोनों तर्जनी
केन्द्रित करता है वह,
श्वास रुकता है।
बाहर का बाहर भीतर का भीतर !
ली : कुम्भक प्राणायाम अपने आप घटित हुआ । होटों को चवाती-सी मुद्रा, दोनों बाहुओं में
नसों का जाल वह
तनाव पकड़ रहा है, त्वचा में उभार सा आया है
लगभग शून्य होने को हैं, और नाखून खूनदार हो उठे हैं
पर गाँठ खुल नहीं रही हैं !
मूकमाटी 531