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उसमें जल मिला कर उसे घुलाना है।
आज माटी को
बस फुलाना है ! क्रमशः कम-कम कर बीते क्षणों को पुराने-पनों को बस, भुलाना है,
आज माटी को ..... . . . . . . उम, मुलाला है..।...
और उन कणों में क्षण-क्षणों में नव-नूतनपन बस, बुलाना है
आज माठी को
वस, फुलाना है। इसी कार्य हेतु प्रांगण में क्रूप है कूप पर खड़ा है कुम्भकार! कर में थी बालटीभँवर कड़ी-दार, उसे नीचे रखता है
और
उलझी रस्सी को सुलझा रहा है। झट-सी वह सुलझती भी पर, सुलझाते समय
18 :: मूक मादी